लड़खड़ाया सा दिख रहा हूँ
मंज़िल से अब भी दूर खड़ा हूँ
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं।।
मज़बूरियो में जकड़ा हुआ हूँ
थका - थका सा लग रहा हूँ
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं।
खुद से ही लड़ रहा हूँ
घडी - घडी बस सह हूँ
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं।
भीड़ में ही खो गया हूँ
अपने वज़ूद को ही ढूँढ रहा हूँ
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं।
आँसुओ को लाये खड़ा हूँ
गले को रुधाये खड़ा हूँ
पर अभी हारा नहीं हूँ मैं।
अपने सपनो को सजाये
अपनी उमीदो की लौ जलाये
अपने हिम्मत को और मज़बूत बनाये
बस यही कह रहा हूँ
अभी हारा नहीं हूँ मैं,
हा ! अभी हारा नहीं हूँ मैं।
आस्था जायसवाल
Hats off to you for this wonderful writing...
ReplyDeletethanks for the appreciation :-)
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