यादों के झरोखें
यादों के झरोखों में जाने ,
कितनी यादें होती हैं।
कुछ हँसाती है तो कुछ ,
रुला देती हैं।
कुछ जगाती हैं तो कुछ ,
सुला देती हैं।
यादों की दुनिया जाने ,
कहाँ ले जाती हैं।
इन यादों में ही तो
जीना होता है।
दूर रहकर भी सबकुछ ,
अपना होता है।
इसीलिए तो यादों से हसीन ,
कहाँ कुछ होता है।
दोस्त रूठे या रिश्ते टूटे ,
अपनों ने ठुकराया या ,
गैरो का साथ काम आया।
जिंदगी में नया मुकाम पाया ,
या शायद कुछ भी न हो पाया।
सब वक़्त के साथ ,
यादें बन जाती है
और यही वो खट्टी -मिट्ठी यादें ,
जिंदगी भर साथ निभाती हैं।
आस्था जायसवाल
No comments:
Post a Comment