कभी -कभी कुछ लम्हे इतना रुला जाते है की मन कहता है की काश ! वो पल कभी अपनी जिंदगी में आये न होते। जिंदगी जितनी आसान लगती है उतनी होती नहीं है। जो सोचा हो वो होता नही है और जो सपने में भी न सोचा हो उसे जीना पड़ जाता है। अजनबी सी दुनिया के हम अजीबो - गरीब लोग न जाने क्या पाना चाहते है। अपनी ख्वाहिशों का आसमान इतना बड़ा बना लेते है की हकीकत की जमीन को देखना ही नहीं चाहते और जब उमीदो की चादर से ढके अपने सपनो को टूटते हुए देखते है तो बस जी - जी के मरते है और मर - मर के जीते है।
जिंदगी के जाने कितने रंग है और न जाने कितने रूप। जो अपना होता है वो परया लगने लगता है और पराये अपने। खून के रिश्तो से बढ़ कर दिल के रिश्ते हो जाते है पर सच तो यही है अपना कोई होता नहीं। भरोसे का क्या है इसे तो अपना हो या परया कोई भी तोड़ सकता है। खुशियाँ और गम भी तो आते जाते रहते है पर हम इंसानो को न जाने सबकुछ पकड़ के रखने की आदत क्यूँ है। हमे सोचना चाहिए की हम सब चीजे मुट्ठी में बंद कर के नहीं रख सकते और अगर ऐसी कोशिश करते है तो तकलीफों के सिवा कुछ हासिल नही होता। जो कुछ अपना नही हो सकता उसे जाने देना चाहिए। ये दो पल के आंसू जिंदगी भर के गम से बेहतर है।
खोना और पाना जिंदगी का नियम है और हमारे लिए ये नियम बदले नही जायेंगे तो जरुरत है हमे बदलने की। हम इंसानो की फितरत भी कितनी अजीब है न की हमे जीना चाहे जितना भी मुश्किल लगे पर हम कभी हिम्मत नही हारते। बस जरुरत ये है हम जानने की हम किस तरह जीना चाहते है , खुश रहकर या फिर दुखी होकर। वक़्त हर गम को भुला देता है और ये जिंदगी एक दिन जीना तो सीखा ही जाती है। ......
दो बूंद आँसू गिरा के मुझे अब
अश्को को छुपाना आ गया।
धोखा खा के मुझे अब
लोगो को पह्चानना आ गया।
कभी खुद से ही हार जाते थे हम यारो
अब तो लोगो को भी हराना आ गया।
जिंदगी जीते -जीते हमे शायद
अब तो जीना ही आ गया। ।
आस्था जायसवाल