Monday, 24 November 2025

   सत्य की जीत                  

 

लगे हो लांछन हज़ार मगर 

मन डिगे न सत्य से कभी

 सीता को भी कहा बक्शा था

 सब थे लोग यही। 


युग बदलते गए पर बदली न ,

लोगो की सोच कहीं 

परीक्षा के लिए खड़ी है 

नारी आज भी वहीँ। 


सच को झूठ  और झूठ  को सच ,

करने की लगी है होड़ बड़ी 

पर यथार्थ है यह की सच 

परेशान  हो सकता है पर पराजित नहीं। 


झूठ के पर्दों  में चाहे 

कितना भी ढक लेना  इसको 

सच फिर भी निकल आएगा 

जैसे बादलों में से चाँद कहीं। 

      

                                           आस्था जायसवाल