उन नींदो में कुछ बात थी
जो बचपन में आ जाती थी।
अब सपनो के डर से
नींदो से भागा करता हूँ।
उस तुतलाने में कुछ बात थी
जो बेधड़क मैं सब कह देता था।
अब बुरा लगने के डर से
कम ही बोला करता हूँ।
उन बच्चो में कुछ बात थी
जो मुझसे लड़ने आ जाते थे।
अब हारने के डर से
लोगों से न लड़ता हूँ।
नानी के घर के रसगुल्ले में जाने क्या स्वाद था
खाने पर भी मन यूँ ललचाया करता था। अब तो सेहत के डर से
उन्हें घर में न लाया करता हूँ।
उन ख्वाबो में कुछ बात थी
जो एक रूपये में पूरे हो जाते थे।
अब टूटने के डर से
सपने न देखा करता हूँ।
उन छोटे - छोटे हाथो में कुछ बात थी
जो आसमान को छूना चाहते थे
अब गिरने के डर से
जमीन को ही तकता हूँ।
उस बचपन में ही कुछ बात थी
जिसे जीने के लिए अब मै इतना तरसा करता हूँ………
आस्था जायसवाल